सम्मेदशिखर माहात्म्य की रचनाएँ

                अनेक कवियों ने विभिन्न भाषाओं में सम्मेदशिखर के माहात्म्य और पूजाओं की रचनाएँ की हैं, उनसे एक महान् सिद्धक्षेत्र और तीर्थराज के रूप में सम्मेदशिखर के गौरव पर प्रकाश पड़ता है और इस तीर्थक्षेत्र का नाम लेते ही श्रद्धा से स्वतः ही मस्तक उसके लिए झुक जाता है।

                गंगादास कारंजा के मूलसंघ बलात्कारगण के भट्टारक धर्मचन्द्र के शिष्य थे। आपने मराठी में पार्श्वनाथ भवान्तर, गुजराती में आदित्यवार व्रतकथा, त्रेपन क्रिया विनती व जटामुकुट, संस्कृत में क्षेत्रपाल पूजा एवं मेरुपूजा की रचना की है। आपका काल सत्रहवीं शताब्दी हैं । आपने संस्कृत में सम्मेदाचल पूजा भी बनायी, जो सरल और रोचक है।

                कवि देवदत्त दीक्षित कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे तथा भदौरिया राजाओं के राज्य में स्थित अटेर नगर के निवासी थे। इन्होंने शौरीपुर के भट्टारक जिनेन्द्रभूषण की आज्ञा से ‘सम्मेदशिखर माहात्म्य’ और ‘स्वर्णाचल माहात्म्य’ की रचना की थी। दीक्षित जी संभवतः १६वीं शताब्दी के विद्वान् थे। उन्होंने ‘सम्मेदाचल माहात्म्य’ के प्रारंभ में लिखा है-

गुरुं गणेशं वाणीं च ध्यात्वा स्तुत्वा प्रणम्य च।
सम्मेदशैलमाहात्म्यं प्रकटीक्रियते मया ।।

इस माहात्म्य में इक्कीस अध्याय हैं। यह सुबोध संस्कृत में लिखा गया है।